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दिल चीज़ ही ऐसी है, कब किस पे आजाए। हम कह नहीं सकत

दिल चीज़ ही ऐसी है, कब किस पे आजाए।
हम कह नहीं सकते, इसे कब कौन भा जाए।
हर दिल है दीवाना, मोहब्बत का ज़माने मे,
कब बस्ती बस जाए, कब दुनियाँ उजड़ जाए।
यूँ तो वफा का दम, सभी भरते हैं उल्फत मे,
उल्फत ये भला कैसी, जिसमे दम ही निकल जाए।
अंजाम उल्फत का, ज़ाहिर था ज़माने पर,
जब कोई परवाना हो जाए, उसे कौन समझाए।
क़श्ती जब डूबी,"फिराक़" किनारा था सामने,
ग़िला करें किस से, जब नसीबा ही बदल जाए।


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दिल चीज़ ही ऐसी है, कब किस पे आजाए।
हम कह नहीं सकते, इसे कब कौन भा जाए।
हर दिल है दीवाना, मोहब्बत का ज़माने मे,
कब बस्ती बस जाए, कब दुनियाँ उजड़ जाए।
यूँ तो वफा का दम, सभी भरते हैं उल्फत मे,
उल्फत ये भला कैसी, जिसमे दम ही निकल जाए।
अंजाम उल्फत का, ज़ाहिर था ज़माने पर,
जब कोई परवाना हो जाए, उसे कौन समझाए।
क़श्ती जब डूबी,"फिराक़" किनारा था सामने,
ग़िला करें किस से, जब नसीबा ही बदल जाए।


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