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रहकर भी साथ सबके गुमनाम हो गया हूं, टूटी हुई छत सा

रहकर भी साथ सबके गुमनाम हो गया हूं,
टूटी हुई छत सा मकान हो गया हूं।।
आते हैं आज भी चौखट पर लोग मेरे,
मैं तो सिर्फ गर्ज का सामान हो गया हूं।।
बंदिश नहीं कोई है फिर भी बंधा हुआ सा,
नदी का तट होके भी श्मशान हो गया हूं।।
बनकर भौरों सा मंडरा रहा मंजरी पर,
जो मंज़ूर नहीं उसी का परिणाम बन गया हूं।।
फैसले सही होंगे क्या फासलों से,
भविष्य में सिमटा वर्तमान हो गया हूं।।
होकर के बसंत ऋतु में झड़ गया पतझड़ सा
राहों में होकर भी “गुमराह” हो गया हूं।।
 रहकर भी साथ सबके गुमनाम हो गया हूं,
टूटी हुई छत सा मकान हो गया हूं।।
आते हैं आज भी चौखट पर लोग मेरे,
मैं तो सिर्फ गर्ज का सामान हो गया हूं।।
बंदिश नहीं कोई है फिर भी बंधा हुआ सा,
नदी का तट होके भी श्मशान हो गया हूं।।
बनकर भौरों सा मंडरा रहा मंजरी पर,
जो मंज़ूर नहीं उसी का परिणाम बन गया हूं।।
रहकर भी साथ सबके गुमनाम हो गया हूं,
टूटी हुई छत सा मकान हो गया हूं।।
आते हैं आज भी चौखट पर लोग मेरे,
मैं तो सिर्फ गर्ज का सामान हो गया हूं।।
बंदिश नहीं कोई है फिर भी बंधा हुआ सा,
नदी का तट होके भी श्मशान हो गया हूं।।
बनकर भौरों सा मंडरा रहा मंजरी पर,
जो मंज़ूर नहीं उसी का परिणाम बन गया हूं।।
फैसले सही होंगे क्या फासलों से,
भविष्य में सिमटा वर्तमान हो गया हूं।।
होकर के बसंत ऋतु में झड़ गया पतझड़ सा
राहों में होकर भी “गुमराह” हो गया हूं।।
 रहकर भी साथ सबके गुमनाम हो गया हूं,
टूटी हुई छत सा मकान हो गया हूं।।
आते हैं आज भी चौखट पर लोग मेरे,
मैं तो सिर्फ गर्ज का सामान हो गया हूं।।
बंदिश नहीं कोई है फिर भी बंधा हुआ सा,
नदी का तट होके भी श्मशान हो गया हूं।।
बनकर भौरों सा मंडरा रहा मंजरी पर,
जो मंज़ूर नहीं उसी का परिणाम बन गया हूं।।

रहकर भी साथ सबके गुमनाम हो गया हूं, टूटी हुई छत सा मकान हो गया हूं।। आते हैं आज भी चौखट पर लोग मेरे, मैं तो सिर्फ गर्ज का सामान हो गया हूं।। बंदिश नहीं कोई है फिर भी बंधा हुआ सा, नदी का तट होके भी श्मशान हो गया हूं।। बनकर भौरों सा मंडरा रहा मंजरी पर, जो मंज़ूर नहीं उसी का परिणाम बन गया हूं।। #yqdidi #मेरीक़लमसे #yqdidihindi #lifegyan #मेरीकविता #voiceofdehati #देहाती_बाबा #दास्तांनहींये