किस बात का है भय तुझे क्यों रात का है भय तुझे? क्यों लाज की चिंता तुझे? है डर अंधेरी रात से, या फिर कोई और बात है? मौन है इक साधना, पर व्यर्थ करना पाप है कहेगी तू नहीं जब तक, मिलेगा राह कैसे? फटेगी तू नहीं जब तक, लगेगा आग कैसे? कर्ण इनके इसलिए तो हैं नही, तू चीख कर भी देख ले, सुन जाए ये वो दिल नहीं कुछ अंकुशे खुद पे भी रख, कुछ अंकुशे इन पर लगा ये भी जले तुझ संग चिता में, वैधव्य का पालन करा जो लाज बस तूने किया, वो लाज इनको भी सीखा जिस रात से बस तू डरी, वो डर इनको भी दिखा कुछ कांड ऐसे कर कि, जिसको याद कर सहमे रहें सुनसान राहों पर बस तू नहीं, ये भी चलने से डरे जो जो किये इन्होने तुझ पर , सब याद इनको भी रहे ऐसिड की जलती आग में , बस तू नहीं ये भी जले। किस बात का है भय तुझे