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Unsplash ये सितम भी खूब है कैद कर पंछी दिल का, अ

Unsplash   ये सितम भी खूब है कैद कर पंछी दिल का,
अंदाज़-ऐ-बयाँ भी बखूब है..!

न उड़ सकते खुले आकाश में,
न रह पाते सुकून से पिंजरे का स्वरुप है..!

हृदय के चीथड़े उड़ाते तंज से भरे तीर तेरे,
मुखौटे में छुपा तेरा ये कैसा रूप है..!

छल कपट से दूर तुझ में ग़ुम हम,
फिर भी तेरी चाहतों में मशरूफ हैं..!

जुल्म पे जुल्म ढाह रहा है इश्क़ तेरा,
न जाने ये मेरा कैसा महबूब है..!

©SHIVA KANT(Shayar) #library #Sitam
Unsplash   ये सितम भी खूब है कैद कर पंछी दिल का,
अंदाज़-ऐ-बयाँ भी बखूब है..!

न उड़ सकते खुले आकाश में,
न रह पाते सुकून से पिंजरे का स्वरुप है..!

हृदय के चीथड़े उड़ाते तंज से भरे तीर तेरे,
मुखौटे में छुपा तेरा ये कैसा रूप है..!

छल कपट से दूर तुझ में ग़ुम हम,
फिर भी तेरी चाहतों में मशरूफ हैं..!

जुल्म पे जुल्म ढाह रहा है इश्क़ तेरा,
न जाने ये मेरा कैसा महबूब है..!

©SHIVA KANT(Shayar) #library #Sitam