White समाज बिगड़ा, देश बिगड़ा और बिगड़ा संसार, यहाँ कहाँ किसी को चैन अब और उजड़ा घर-बार, सुध-बुध खो कर बैठी दुनिया, दूषित हो गए हैं सबके विचार, सफऱ कठिन है माना जीवन का पर क्यों करते हो अपने ज़मीर का व्यापार, अहंकार टिक ना सका उस दशानन का भी जिसके पास था ज्ञान अपार, तुम किस खेत की मूली हो ये जानकर भी क्यों भरते हो दंभ बेकार, खोखली हो गयी है विनम्रता और फीके हो गए हैं शिष्टाचार, स्वार्थ रूपी सुरसा, परमार्थ को लीलने बैठी है मुख खोले तैयार गरीबी की भूख बड़ी है और अमीरी करती है कूड़ेदान से रोटी का व्यापार, बेहतर इलाज के अभाव में दम तोड़ रहा है हर वो बीमार जो है धन से लाचार, मानवता अब क्षीण हो रही और फ़ैल रहा अमानवता रूपी अंधकार, हे मानव जागो उठो और भागो अब करने को परोपकार ।। ©Avinash Lal Das #करने_को_परोपकर#