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आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह। तुलसी' तहाँ न जाइ

आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह।
तुलसी' तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह।।





इस दोहे में तुलसीदास जी कहते हैं कि जिस व्यक्ति के घर में जाने पर घर के लोग आपको देखकर प्रसन्न न हों और जिनकी आंखों में जरा भी स्नेह न हो, तो ऐसे घर में कभी नहीं जाना चाहिए, चाहे वहां जाकर कितना ही लाभ क्यों न हो।

©Jyoti
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