फिर रुक कर बुलाना मुमकिन नहीं था रंजिश में रिश्ता निभाना मुमकिन नहीं था ये दूरियाँ फ़क़त तेरे मेरे दरमियाँ रहीं पर तुम्हें भूल जाना मुमकिन नहीं था वाक़िफ़ हूँ इंतज़ार में आबशार हैं आँखें हर बार लौट आना मुमकिन नहीं था मै देखता हूँ वही सब जो देखते हो तुम बस तुम्हें नज़र आना मुमकिन नहीं था जिनके साथ साथ हुए जवान हम भी उन्हें अजनबी बताना मुमकिन नहीं था इकरार है अंधेरी रातों कि तन्हाई में हरबार चाँद को मनाना मुमकिन नहीं था ये जानकर की टूट जाएँगे फलक के शौक़ कच्ची मिट्टी के घर सजाना मुमकिन नहीं था उन्हें ये ग़म की “वत्स” लिखता रहा ग़ज़ल हर बार उन्हें लिख पाना मुमकिन नहीं था #मुमकिन_नहीं #वत्स #vatsa #dsvatsa #illiteratepoet #yqquotes #hindipoetry फिर रुक कर बुलाना मुमकिन नहीं था रंजिश में रिश्ता निभाना मुमकिन नहीं था ये दूरियाँ फ़क़त तेरे मेरे दरमियाँ रहीं पर तुम्हें भूल जाना मुमकिन नहीं था