Nojoto: Largest Storytelling Platform

बदनसीब हु बेबस हु ना चाहकर भी जिंदा हु, मैं वो बिछ

बदनसीब हु बेबस हु
ना चाहकर भी जिंदा हु,
मैं वो बिछड़े भारत का
सेहमासा परिंदा हु । 

गांव से निकला कमाने को
शोहरत ओर मुकाम पाने को,
पर सिमट कर रह गई ख्वाईशे
दो वख्तकी रोटी खां ने को ।

जब देश मे धुंआ उठता है
मैं सबसे पहले जलता हु,
पहोच गई है चाँद पे दुनिया
मैं आज भी पैदल चलता हूं ।

कई लूँटाते है लाखो शहर के
मोल ओर दुकानों में ,
भाव ताल याद आता है
सब्जियों के कंतानो में ।

दिन रात पसीना बहाता हु
मिट्टी और मशीनों में ,
मैं तरसा पाई पाई को
वो लाखो लूँटाते कशीनो में।

मुश्किल से बनाई चार दीवारे
छत कहाँ आशियाने को ,
जब बारिश हुई जोरो की तो
मजबूर हो गया बह जाने को ।

करके भी मदद थोडी बहोत
एहसान बहोत जताते है ,
एक बार का खाना देकर
तस्वीरो में चिपकाते है ।

काश की साथ मे चुनाव होता
इस कोरोना की महामारी में,
बड़ी इज्जत से ले जाते घर
बिठाके बढ़िया सवारी में ।

खेलते है क़भी वोटो के लिए
कभी खेलते नोटों के लिए,
सदियो से में आहत हु
मै वो बिछड़ा भारत हु ।
     
   -सोहम पालनपुरी #सोहमपालनपुरी #भारत #भारतीय #गरीब 

#DesertWalk
बदनसीब हु बेबस हु
ना चाहकर भी जिंदा हु,
मैं वो बिछड़े भारत का
सेहमासा परिंदा हु । 

गांव से निकला कमाने को
शोहरत ओर मुकाम पाने को,
पर सिमट कर रह गई ख्वाईशे
दो वख्तकी रोटी खां ने को ।

जब देश मे धुंआ उठता है
मैं सबसे पहले जलता हु,
पहोच गई है चाँद पे दुनिया
मैं आज भी पैदल चलता हूं ।

कई लूँटाते है लाखो शहर के
मोल ओर दुकानों में ,
भाव ताल याद आता है
सब्जियों के कंतानो में ।

दिन रात पसीना बहाता हु
मिट्टी और मशीनों में ,
मैं तरसा पाई पाई को
वो लाखो लूँटाते कशीनो में।

मुश्किल से बनाई चार दीवारे
छत कहाँ आशियाने को ,
जब बारिश हुई जोरो की तो
मजबूर हो गया बह जाने को ।

करके भी मदद थोडी बहोत
एहसान बहोत जताते है ,
एक बार का खाना देकर
तस्वीरो में चिपकाते है ।

काश की साथ मे चुनाव होता
इस कोरोना की महामारी में,
बड़ी इज्जत से ले जाते घर
बिठाके बढ़िया सवारी में ।

खेलते है क़भी वोटो के लिए
कभी खेलते नोटों के लिए,
सदियो से में आहत हु
मै वो बिछड़ा भारत हु ।
     
   -सोहम पालनपुरी #सोहमपालनपुरी #भारत #भारतीय #गरीब 

#DesertWalk