Unsplash फिल्मों में ऐसा होता है, एक मंच होता है, वो मंचन होता है, वो अभिनय होता है, जो नायक होता है, फिर परिचय होता है, एक बड़ा आदमी अब का, कल का गरीब, दुखियारा कह देता है व्यथा कथा, पैदा करता है भावुकता, एक समझ अब हर रिश्ता, मर भी सकता है कहते वो पात्र, आम आदमी को मंचन -मंच का - देखना चाहिए न सपना, वैसा कुछ तसव्वुर भी न करना चाहिए, आम अदना आदमी है मात्र, मुश्किल है अभिनेता बनना,, आम जीवन से जुड़ा - वह बन सकता न नेता -अधिकारी , सीधे सजे जा चढ़े मंच और बोले, अभिनेता तो दोहरे मंच का मंचासीन। ख्वाब खार है। ©BANDHETIYA OFFICIAL #Book #दुख सुख नहीं।