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कम्बख़्त नींद भी नहीं आती अब तो, तेरे अगले ख़त के इं

कम्बख़्त नींद भी नहीं आती अब तो,
तेरे अगले ख़त के इंतज़ार में।
मुद्दतें लगें तो लग जाने दे,
सुनने को तेरे इंकार में।
शब्दों का हूँ अनुभवी खिलाङी,
शब्दों में तुझे पिरो लूंगा।
साथ रहे तो हर पल खुशनुमा,
वरना याद में तेरी रो लूंगा। पता नहीं क्यों पर नींद नहीं आ रही!
कम्बख़्त नींद भी नहीं आती अब तो,
तेरे अगले ख़त के इंतज़ार में।
मुद्दतें लगें तो लग जाने दे,
सुनने को तेरे इंकार में।
शब्दों का हूँ अनुभवी खिलाङी,
शब्दों में तुझे पिरो लूंगा।
साथ रहे तो हर पल खुशनुमा,
वरना याद में तेरी रो लूंगा। पता नहीं क्यों पर नींद नहीं आ रही!