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जिंदगी के हसीन लम्हें कुछ जीने चली हूं मैं, बागबान

जिंदगी के हसीन लम्हें कुछ जीने चली हूं मैं,
बागबान के आंगन की कली खिलने चली हूं मैं,
अभी ना बांधों मेरे पांव में जिम्मेदारी के घुंगरू,
कि मुक्त गगन के इन्द्रधनुष में रंग भरने चली हूं मैं  ।
शिवा अधूरा बेटी के लिए
जिंदगी के हसीन लम्हें कुछ जीने चली हूं मैं,
बागबान के आंगन की कली खिलने चली हूं मैं,
अभी ना बांधों मेरे पांव में जिम्मेदारी के घुंगरू,
कि मुक्त गगन के इन्द्रधनुष में रंग भरने चली हूं मैं  ।
शिवा अधूरा बेटी के लिए

बेटी के लिए #विचार