वक्त की कश्ती किसी दरिया के तूफाँ से नहीं ड़रती, न रूकती,न ड़ूबती,न कुछ कहती बस चलती रहती; और चलते-चलते पार कर जाती है बड़े से बड़े सैलाबो को, इसलिए क्यों खड़े हो किनारे पर आओ इस कश्ती पर सवार हो और निकल पड़ो अपने उज्ज्वल कल की ओर...... #कश्ती