आज भी एक भीषण अग्नि में जला देती हैं वो मनहूस सुनसान रातें, जिसमें होते है जिसम्भरोशी के काले काम यह बहुत मुझे हैं डराते, घूमते हैं मानवभेष में नरभक्षी अपने जिस्म की भूख़ किसी मादा से ही क्यों शांत कराते हैं, न जाने ये सुनसान राते उन्हें ही अपनी भूख का साधन क्यों नही बनाते हैं, न जाने को हर बार ही कोई बेगुनाह को ही क्यों वो फँसाते हैं। 🎀 Challenge-220 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 6 पंक्तियों में अपनी कविता लिखिए। (ध्यान रहे कविता लिखनी है)