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■■■■बचपन की यादें■■■■ ____________________________

■■■■बचपन की यादें■■■■
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आज की बारिश ने मुझे अपना बचपन याद दिला दिया क्या खूबसूरत वक्त था ना बचपन का उस वक्त नहाने पर बीमार नही होते थे और आज थोड़ा भीगने पर बीमार हो जाते है,बचपन मे दोस्तो के साथ खूब बारिश के बहते बहाव में कागज़ की नाव चलाया करते थे और फिर उसी नाव में पानी भरता देखते थे कि कब ये नाव डूबती है और किसकी नाव ज्यादा आगे तक जाती है साईकल के पुराने टायर से दौड़ लगाते थे, कांच की गोलियों से खूब अलग अलग तरह के  खेल खेला करते थे जिन्हें अंचिया कहते थे इनसे  गोला, गिच, नक्का-चौक में साफ्कुच,धड़का,सीध,गुड़काश वगैरह जैक का इस्तेमाल करते थे जीतने के लिए। इसके अलावा लट्टू, पोसम्भा-भई-पोसम्भा, लोहा-लकड़ी, धरती-भाटा, गिल्ली-डंडा, भागम-भाग, सितोलिया, पतंग लूटना, केसीट की रील निकलना, चिड़िया उड़, राजा रानी चोर सिपाही, आसपास-थप्पी, छापे, चकन-पे, चोर-पुलिस, घर-घर, बर्फी, निसरणी,गुलाम-लड़की, कबड्डी, कुच्चा-दड़ी, माल-दड़ी ओर कही खेल खेलते थे बहुत आनंद भरा बचपन था हमारा। गुड़िया के बाल, संतरे, खोपरे ओर काले-नमक व ज़ीरे की गोलियां, इमली, अठन्नी ओर रुपये वाली पेप्सी , भोगले जिन्हें फिंगर कहते है आजकल, इसके अलावा आमलिकंठे, पारलेजी-किसमी, पारले जी बिस्किट, इनाम वाली चूरन ओर बहुत कुछ जो शायद अब यादों से भी ओझल हो गया है क्या खूबसूरत था हमारा बचपन।
बारिश के बाद मेंढक फ़ूडकलो ओर मकोड़ो का आतंक, घास में चलती मखमल की डोकरी, ओर साँप की छतरी, सांप की मौसी ओर बहुत से टिड्डे जिन्हें अल्लाह का घोड़ा कहते थे कितना खूबसूरत था हमारा बचपन,
वो रूठने पर कट्टी हो जाना और वापस मनाए पर अब्बा हो जाना भी याद है, कितना आसान था ना रूठो को मना लेना काश आज भी लोग इसी अब्बा से फिर एक हो जाते पर अब ऐसा नही होता, अफसोस बचपन हमसे रुखसत हो गया। पेपर से कितने तरह के खिलौने बनाया करते थे हम हवाई जहाज़, नाव, गुलाब का फूल, मेंढक, हवा में उड़ने वाली फिरकी, ओर बहुत कुछ जो शायद अब ख्यालो में ही रह गया है।
बारिश में जब स्कूल में यूनिफार्म पहनकर नही जाते या जूते नही पहनते तो टीचर से एक बहाना फिक्स था की बारिश में कपड़े भीग गए है या जूते भीग गए या मोज़े भीग गए और जब घर को लौटते रहते थे तो रास्ते मे दोस्तो को पानी से भरे खड्डे में धक्का दे दिया करते थे।
जब होमवर्क करना भूल जाते थे तो कॉपी घर रह गई ऐसा बहाना बनाते थे,ओर फिर टीचर से डंडे पड़ते थे और कभी कभी हाथ खड़े करने पडते थे, लड़को को मुर्गा बनाया जाता और लड़कियो को हाथ खड़े करवाये जाते थे।
एप्लीकेशन पर फ़र्ज़ी साइन करवाकर आधी छुट्टी लेकर घर भाग जाया करते थे ओर पेंसिल छिलने के लिए तो कभी इरेज करने के लिए रब्बड़ मांगने के नाम पर परीक्षा में नकल करना भी याद है कितना खूबसूरत था हमारा बचपन।
कॉपी चेक करवाते वक्त सबसे ऊपर अपनी कॉपी रख देते थे जिससे सबसे जल्दी हमारी कॉपी चेक हो जाए, रंग-बिरंगे पक्षियों के पंखों को किताब में विद्या कहकर रखते थे कितना ख़ूबसुरत था हमारा बचपन😊
एक रुपये में दस मिनट का मारियो गेम ओर कौनट्रो गेम खेला करते थे
ओर जब गांव में बेहरुपीया आता तो उसके साथ पूरा गांव का चक्कर लगाते फिरते थे ओर घर आने पर अम्मी की मार भी याद है।
शक्तिमान, जुनियर जी, हातिम जैसे सुपर हीरोज़ के फैन हुआ करते थे बचपन मे हम बहुत खूबसूरत था हमारा बचपन
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आज की बारिश ने मुझे अपना बचपन याद दिला दिया क्या खूबसूरत वक्त था ना बचपन का उस वक्त नहाने पर बीमार नही होते थे और आज थोड़ा भीगने पर बीमार हो जाते है,बचपन मे दोस्तो के साथ खूब बारिश के बहते बहाव में कागज़ की नाव चलाया करते थे और फिर उसी नाव में पानी भरता देखते थे कि कब ये नाव डूबती है और किसकी नाव ज्यादा आगे तक जाती है साईकल के पुराने टायर से दौड़ लगाते थे, कांच की गोलियों से खूब अलग अलग तरह के  खेल खेला करते थे जिन्हें अंचिया कहते थे इनसे  गोला, गिच, नक्का-चौक में साफ्कुच,धड़का,सीध,गुड़काश वगैरह जैक का इस्तेमाल करते थे जीतने के लिए। इसके अलावा लट्टू, पोसम्भा-भई-पोसम्भा, लोहा-लकड़ी, धरती-भाटा, गिल्ली-डंडा, भागम-भाग, सितोलिया, पतंग लूटना, केसीट की रील निकलना, चिड़िया उड़, राजा रानी चोर सिपाही, आसपास-थप्पी, छापे, चकन-पे, चोर-पुलिस, घर-घर, बर्फी, निसरणी,गुलाम-लड़की, कबड्डी, कुच्चा-दड़ी, माल-दड़ी ओर कही खेल खेलते थे बहुत आनंद भरा बचपन था हमारा। गुड़िया के बाल, संतरे, खोपरे ओर काले-नमक व ज़ीरे की गोलियां, इमली, अठन्नी ओर रुपये वाली पेप्सी , भोगले जिन्हें फिंगर कहते है आजकल, इसके अलावा आमलिकंठे, पारलेजी-किसमी, पारले जी बिस्किट, इनाम वाली चूरन ओर बहुत कुछ जो शायद अब यादों से भी ओझल हो गया है क्या खूबसूरत था हमारा बचपन।
बारिश के बाद मेंढक फ़ूडकलो ओर मकोड़ो का आतंक, घास में चलती मखमल की डोकरी, ओर साँप की छतरी, सांप की मौसी ओर बहुत से टिड्डे जिन्हें अल्लाह का घोड़ा कहते थे कितना खूबसूरत था हमारा बचपन,
वो रूठने पर कट्टी हो जाना और वापस मनाए पर अब्बा हो जाना भी याद है, कितना आसान था ना रूठो को मना लेना काश आज भी लोग इसी अब्बा से फिर एक हो जाते पर अब ऐसा नही होता, अफसोस बचपन हमसे रुखसत हो गया। पेपर से कितने तरह के खिलौने बनाया करते थे हम हवाई जहाज़, नाव, गुलाब का फूल, मेंढक, हवा में उड़ने वाली फिरकी, ओर बहुत कुछ जो शायद अब ख्यालो में ही रह गया है।
बारिश में जब स्कूल में यूनिफार्म पहनकर नही जाते या जूते नही पहनते तो टीचर से एक बहाना फिक्स था की बारिश में कपड़े भीग गए है या जूते भीग गए या मोज़े भीग गए और जब घर को लौटते रहते थे तो रास्ते मे दोस्तो को पानी से भरे खड्डे में धक्का दे दिया करते थे।
जब होमवर्क करना भूल जाते थे तो कॉपी घर रह गई ऐसा बहाना बनाते थे,ओर फिर टीचर से डंडे पड़ते थे और कभी कभी हाथ खड़े करने पडते थे, लड़को को मुर्गा बनाया जाता और लड़कियो को हाथ खड़े करवाये जाते थे।
एप्लीकेशन पर फ़र्ज़ी साइन करवाकर आधी छुट्टी लेकर घर भाग जाया करते थे ओर पेंसिल छिलने के लिए तो कभी इरेज करने के लिए रब्बड़ मांगने के नाम पर परीक्षा में नकल करना भी याद है कितना खूबसूरत था हमारा बचपन।
कॉपी चेक करवाते वक्त सबसे ऊपर अपनी कॉपी रख देते थे जिससे सबसे जल्दी हमारी कॉपी चेक हो जाए, रंग-बिरंगे पक्षियों के पंखों को किताब में विद्या कहकर रखते थे कितना ख़ूबसुरत था हमारा बचपन😊
एक रुपये में दस मिनट का मारियो गेम ओर कौनट्रो गेम खेला करते थे
ओर जब गांव में बेहरुपीया आता तो उसके साथ पूरा गांव का चक्कर लगाते फिरते थे ओर घर आने पर अम्मी की मार भी याद है।
शक्तिमान, जुनियर जी, हातिम जैसे सुपर हीरोज़ के फैन हुआ करते थे बचपन मे हम बहुत खूबसूरत था हमारा बचपन