यह पीपल का पेड़ अगर माँ होता आंगन तीरे। मैं भी उस पर बैठकर राधा बनती धीरे-धीरे॥ ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली। किसी तरह नीची हो जाती यह पीपल की डाली॥ तुम्हें नहीं कुछ कहती पर मैं चुपके-चुपके आती। उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाती॥ वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाती। अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाती॥ सुन मेरी बंसी को माँ तुम इतनी खुश हो जाती। मुझे देखने काम छोड़ कर तुम बाहर तक आती॥ तुमको आती देख बांसुरी रख मैं चुप हो जाती। पत्तों में छिपकर धीरे से फिर बांसुरी बजाती॥ गुस्सा होकर मुझे डांटती, कहती "नीचे आजा"। पर जब मैं ना उतरती , हंसकर कहती "रानी बेटी"॥ "नीचे उतरो मेरी बेटी तुम्हें मिठाई दूंगी। नए खिलौने, माखन-मिसरी, दूध मलाई दूंगी"॥ बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आती। माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता॥ तुम आँचल फैला कर अम्मां वहीं पेड़ के नीचे। ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आँखें मीचे॥ तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आती। और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाती॥ तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जाती। जब अपनी रानी बेटी को गोदी में ही पातीं॥ इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे। यह पीपल का पेड़ अगर माँ होता आंगन तीरे॥ ©Ehssas Speaker #यह पीपल का पेड़