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कुछ रूपों का बदलाव ---------------------- कुछ ख़्


कुछ रूपों का बदलाव
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कुछ ख़्वाब बुना, कुछ पूरे हुए
फिर खुशियों का ठहराव हुआ
मंजिल को पाने की चाहत में
जीवन के, कुछ रूपों का बदलाव हुआ।

कहीं समय का ठहरना गुमशुम सा
कुछ रस्ते खुद रफ़्तार हुए
अपनों से बिछड़ना वक्त का था
कहीं मुसाफ़िर रिश्तेदार हुए,

असमंजस की इस दुनिया में
नि स्वार्थ चला ना जाएगा
कुछ करना है, क्या करना है
ये वक्त यही सिखलाएगा
यूं उलझन भी बेशुमार हुई
और बेइंतेहा खुद से प्यार हुआ
मंज़िल को पाने कि चाहत में
जीवन के, कुछ रूपों का बदलाव हुआ।।

©kamta prasad nayak
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