प्यार में इल्जाम कैसे, मिलते नहीं मुकाम ऐसे, गुनाह तो होते नहीं अकेले, फिर सब में तेरा नाम कैसे। कभी देखो अगर झांक कर, अपने गिरेबान में, पता चलेगा दूसरे को, करते हैं बदनाम कैसे। जिंदगी में जिनकी, जगह खास थी, होने लगी वो, आम कैसे। जिन्हें होता है एहसास किसी के, पल में दूर जाने का, उनसे पूछो गम में ढलते, उनके सुबह शाम कैसे, "आेमबीर काजल" जिन्हें बसाया,दिल में राज बना कर, इज्जत उनकी सिर आंखों पर, उनको करूं सरेआम कैसे। ©Ombir Kajal प्यार में इल्जाम कैसे