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जानकर भी बहुत अनजान हूँ, अब तेरा अपना न रहा, मेहम

जानकर भी बहुत अनजान हूँ,

अब तेरा अपना न रहा, मेहमान हूँ।

अब वो पहले जैसा कहाँ कुछ भी बचा हैं ,
हाँ, मगर तुम कहोगे कि ये सब काल ने रचा है, 
पहले जो तेरा गुरूर था मैं, अब अपमान हूँ,

जानकर भी --

चलो ये भी अच्छा है कि अपने रास्ते नहीं एक जैसे,
 ये बताओ कि कमल और कीचड़ एक साथ रहते हैं कैसे?
कमल कहता है कीचड़ को आभूषण, मैं तो आपके अतीत का एक काला निशान हूं!!
जानकर भी....
अगर हमसे पूछो तो प्रेम अब भी है उतना ही, 
तुम्हारे लिए मगर अब इंतजार में करता नहीं, 
पहले तेरी जुल्फे मेरी उलझन थी,
अब मैं एक सुलझा हुआ इंसान हूँ, जानकर भी...
               ---- अनुराग अल्प

©ANURAG CHAUBEY
  #oldlove