जाना किसी ने न हमको यहाँ। समझा कभी ना किसी ने यहाँ। शब-रौ की आहट हुई जो मुझे। सुबैदा में सैरे अदम सह लिया। चाहत हमें जिनसे फूलों की थी। काँटों से दामन मेरा भर दिया। अपने होने का दम रोज भरते रहे! धोखा उन्होंने ही अक़्सर दिया। इश्क़ में भी सियासत हुई जोर की। इसलिए ताज हमने भी ठुकरा दिया। 🎀 Challenge-237 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 10 पंक्तियों में अपनी रचना लिखिए।