Ajeeb Dastaan Hai yeh समझ नहीं आता करूं तो क्या करूं ना मंजिल है ना कोई रास्ता और ना ही पता कोई ठिकाना है बस बेजान सी जिंदगी और लंबे चलते जाना जाना है कुछ फूल खुशियों के मेरी जिंदगी में भी आए थे पर पतझड़ ने हरदम कोहराम मचाया मैं क्या करूं किस्मत को मानती नहीं बस जिंदगी ने हर मोड़ पर धोखे से मुझे मिलवाया है मैं कितनी भी कोशिश कर लूं आगे बढ़ने की उसने हमेशा मुझे पीछे गिराया है Bs उन रातों को मैंने हिम्मत बटोर की ताकत लगाई थी किस्मत से लड़ने की मेहनत से बढ़ने की कसम खाई थी लेकिन आज फिर वही खड़ी हूं जहां से चली लड़ाई थी सोचती हूं अक्सर मैं अब क्या होगा हारूंगी तो पर हिम्मत न हारने का मन में सुकून तो होगा जिंदगी कितना खेल खिलाती है हर खेल में भाग लेने का इत्मिनान तो होगा मैं कहूंद पड़ती हुँ रोज सुबह और रात को सोने से पहले लड़ जाती हूं मैं इस अजीब दास्तां के बीच रोज उलझती जाती हूं