रोज़-ए-महशर वो भी क्या ख़ूब होगा मंज़र बारगाह ए इलाही में जब तेरी संगदिली करूँगा बयां मैं और बरबस कह उठेगा, ख़ुदा के लिए चुप हो जाओ - होके पशेमां तू Musings - 2/5/19