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#OpenPoetry ख़्वाबों की तासीर ! तेरे दीदार को तरस

#OpenPoetry ख़्वाबों की तासीर !

तेरे दीदार को 
तरसती मेरी 
ये खुमार से भरी 
दोनों निश्छल आँखें 
रोज रात एक नया 
ख्वाब बुन लेती है 
जिनकी तासीर मेरे 
होंठों पर चासनी सी
धीरे-धीरे उतरती है 
फिर पूरी रात इश्क़
कतरा-कतरा कर
मेरी रूह में धीरे-धीरे 
उतरता रहता है ! #ख्वाबों #की #तासीर
#OpenPoetry ख़्वाबों की तासीर !

तेरे दीदार को 
तरसती मेरी 
ये खुमार से भरी 
दोनों निश्छल आँखें 
रोज रात एक नया 
ख्वाब बुन लेती है 
जिनकी तासीर मेरे 
होंठों पर चासनी सी
धीरे-धीरे उतरती है 
फिर पूरी रात इश्क़
कतरा-कतरा कर
मेरी रूह में धीरे-धीरे 
उतरता रहता है ! #ख्वाबों #की #तासीर