किस हक़ से मैं तुम्हारा इस्तकबाल करू जो आए हो हमारे गरीबखाने पे, उम्मीद-ए-डोर की बफा तुमने कब की खिंच रखी है जो अब तुमसे अपने दिल में ठहर ने की फरयाद करू। फ़रयाद किस हक़ से मैं तुम्हारा इस्तकबाल करू जो आए हो हमारे गरीबखाने पे, उम्मीद-ए-डोर की बफा तुमने कब की खिंच रखी है जो अब तुमसे अपने दिल में ठहर ने की फरयाद करू। #khnazim