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#OpenPoetry हर नारी की शान थी। हर नारी की अभिमान थ

#OpenPoetry हर नारी की शान थी।
हर नारी की अभिमान थी।
वैदुष्य चमकता था चेहरे पर,
जो हर नारी की पहचान थी।।

माँ वाणी का उन पर हाथ था।
समस्त जन- जन का साथ था।
अद्भुत सुषमा थी वो खुद में ही,
चन्दा - सा दमकता माथ था।।

चहु-दिशि फैली इनकी कीर्ति ।
है विश्वपूज्यनीय इनकी मूर्ति।
प्रतिपल खिली रही नलिनी- सी,
सौम्या सी थी इनकी आकृति।।


अंजली श्रीवास्तव सुषमा स्वराज
#OpenPoetry हर नारी की शान थी।
हर नारी की अभिमान थी।
वैदुष्य चमकता था चेहरे पर,
जो हर नारी की पहचान थी।।

माँ वाणी का उन पर हाथ था।
समस्त जन- जन का साथ था।
अद्भुत सुषमा थी वो खुद में ही,
चन्दा - सा दमकता माथ था।।

चहु-दिशि फैली इनकी कीर्ति ।
है विश्वपूज्यनीय इनकी मूर्ति।
प्रतिपल खिली रही नलिनी- सी,
सौम्या सी थी इनकी आकृति।।


अंजली श्रीवास्तव सुषमा स्वराज