हर इब्तिदा का अंजाम हो ज़रूरी तो नहीं हर ख़ामोशी को मिले आवाज़ ज़रूरी तो नहीं जो अधूरा है तय करने दो उसे आप ही सफ़र वक़्त का कोई राह तो होगी... जानिबे मंज़िल हो ज़रूरी तो नहीं 10/4/20