माँ का दर्द पक गयी हूँ-थक गयी हूँ,और नहीं ये सह सकती, यूँ घर में छुपी रहे मेरी गुडिया और नहीं ये सह सकती, कभी समय था मेरी गुडिया घर घर खेला करती थी, छोटे छोटे पाँव से भागा दौड़ा करती थी, सहम गयी है ठिठक गयी है, क्यूँ बचपन उसका खो गया, देख नहीं सकती हूँ मैं अब, शोषन अपनी बच्ची का, कैसे कोई वहशी आकर उसको यूँ धमकायेगा, आखिर कब तक डरी रहेगी छुपी रहेगी, आखिर कोई भी बच्ची, क्यूँ अब अपने ही घर में महफूज नहीं कोई बच्ची, क्यूँ अब अपने ही घर में महफूज नहीं कोई बच्ची, #अंकित सारस्वत# #माँ का दर्द