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आँखों को मैंने खोला, तो देखा दुनिया मगरूर है। जहाँ

आँखों को मैंने खोला, तो देखा दुनिया मगरूर है।
जहाँ तंगी से जीने वाले और अमीर हैं खफूर है।

आवाज उठाने से डरते हैं सभी, क्योंकि सिसकती है सत्ता।
जो बोलते हैं सच के लिए, वो भूखे सुलगते प्यासे बस्ता।

बलिदान करने वालों की तो सोचो क्या हालत होगी,
जो नाममात्र से प्रख्यात हैं, उनकी असली पहचान नहीं होगी।

गुंडों ने ले ली है सरकारें, तो कहते हैं ये हमारी भागीदारी।
जिस दिन आम आदमी से होगी उनकी तकरार, तब शायद होगी उनकी सफलता की पूरी कहानी।

क्या हम सोते रहेंगे जब दुनिया का हाल नजर आता हो,
जहाँ अजनबी बनता है जीवन, जहाँ जिंदगी की कीमत कुछ नहीं होती है।

समाजिक मुद्दों पर सोचो, अपने अंदर की बदलावी करो,
अपने अंदर की ताकत से दुनिया को बदलावी करो।

©Sakshi Gupta
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