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फूल बनकर पास बिख़र गए हो तुम। मेरी हर एक साँस में उ

फूल बनकर पास बिख़र गए हो तुम।
मेरी हर एक साँस में उतर गए हो तुम।
सफ़र हो मुक़म्मल हम क़दम बन कर!
ज़िन्दगी की ज़रूरत बन गए हो तुम।

हिलोर लेतीं ख़्वाहिशों के समंदर में,
मैं नाविक जीवन की नाव बहा बैठा!
तूफ़ाँ आएँगे हवाएँ चलेंगी पुर ज़ोर,
मझधार में पतवार बन गए हो तुम।

हम राही एक मंज़िल के ये वचन दिए!
कंकड़ पत्थर से चुनकर फूल बिछाने का,
निपट अंधेरी रात हो या सोने से दिन!
जुगनू जैसे स्वर्णकार बन गए हो तुम। 🎀 Challenge-196 #collabwithकोराकाग़ज़

🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है।

🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है।

🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। आप अपने अनुसार लिख सकते हैं। कोई शब्द सीमा नहीं है।
फूल बनकर पास बिख़र गए हो तुम।
मेरी हर एक साँस में उतर गए हो तुम।
सफ़र हो मुक़म्मल हम क़दम बन कर!
ज़िन्दगी की ज़रूरत बन गए हो तुम।

हिलोर लेतीं ख़्वाहिशों के समंदर में,
मैं नाविक जीवन की नाव बहा बैठा!
तूफ़ाँ आएँगे हवाएँ चलेंगी पुर ज़ोर,
मझधार में पतवार बन गए हो तुम।

हम राही एक मंज़िल के ये वचन दिए!
कंकड़ पत्थर से चुनकर फूल बिछाने का,
निपट अंधेरी रात हो या सोने से दिन!
जुगनू जैसे स्वर्णकार बन गए हो तुम। 🎀 Challenge-196 #collabwithकोराकाग़ज़

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