ग़मो का हिसाब क्यों रखते हो तुम यहाँ चेहरा उदासीयों का क्यों रखते हो तुम यहाँ उगते सूरज को देखो, नए दिन का आगाज़ है कल की चिंता में डूबे क्यों रहते हो तुम यहाँ हसरत इंसान को जीने की ताकत देती है बे-ख़्वाहिश-ए-दिल क्यों रखते हो तुम यहाँ जीते हैं चल आज गुज़िश्ता पलों को भूल कर माज़ी के दरिया में क्यों बहते हो तुम यहाँ एक नया आगाज़ करते है 'सफ़र' का हम दोनों खारों की जमीन पर क्यों चलते हो तुम यहाँ गुज़िश्ता- past माज़ी- past खार- काँटे 👉🏻 प्रतियोगिता- 229 🌹ग़ज़ल प्रतियोगिता प्रत्येक गुरुवार 🌹