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मुझे श्याम के उस नजर कि कसम जिस नज़र से तसव्वर के

मुझे श्याम के उस नजर कि कसम
जिस नज़र  से तसव्वर के जाती नहीं
पलकों को उठाऊं तो हर शय में वो 
बंद पलकों से ख्वाहिश के जाती नहीं

घुंघरू सी लट करे अक्स पे छेड़खानी 
ये पागल अली लब ए शबनम कि दीवानी 
 ये सुर्खी लबों से छलकती रहती वहीं 
ये नज़र श्याम से         दूर जाती नहीं

कारी कारी नज़र करती     जादूगरी है
जुल्फों पे नजारों कि नज़र जा गड़ी है
बाते रूहानी जिनकी, मुसकी हसीं
ये नज़र श्याम से दूर।   जाती नहीं
राजीव

©samandar Speaks
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