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लड़का बनना आसान हो या नही, लडक़ी बने रहना कठिन है **

लड़का बनना आसान हो या नही, लडक़ी बने रहना कठिन है
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कितने आसानी से कह दिया तुमने की लड़का बनना आसान नहीं है, तो क्या लडक़ी बने रहना आसान है ?
हाँ जानती हूँ कि लड़के जन्म से पहले ही बना दिये जाते हैं इंजीनियर, डॉक्टर या कलेक्टर,
दिया जाता है इन्हें बस्ता उठाने से पहले ज़िम्मेदारी उठाने का एहसास,
लेकिन लड़की होने से पहले करा दी जाती है जाँच, घर में पहले से हुई दो लड़की तो तीसरे की करा दी जाती है 
भ्रूण हत्या, नही लेने दिया जाता है जन्म, जन्म हो भी गया तो नही मनाई जाती ख़ुशी, छा जाता है मातम
बना दिया जाता है उसे दहेज़ का बोझ, दो चार दस लाख की गठरी
बेच दिया जाता है उसके हिस्से का खेत ज़मीन औऱ बाँध दी जाती है किसी लड़के के खुटे पर गाय की तरह

हाँ मानती हूँ कि लड़कों को पूरे करने पड़ते हैं मां बाप के वो अधूरे सपनें, जो पूरे न हुए
थोप दिये जाते हैं लड़कों पर ज़ागीर की तरह बचपन से ही लड़कों को बता दिया जाता है 
बड़े होकर तुम्हें करनी है बहन की शादी बनवाना है तुम्हें घर, खरीदनी है गाड़ी
तुम्हें करना है अपने खानदान का नाम रोशन, तो लड़कियों को सपनें देखने की नही दी जाती आज़ादी
उन्हें पलना बढ़ना होता है किसी मर्द की छाँव में, रहना होता है किसी बाप भाई या पति के नाम के नीचे

हाँ जानती हूँ लड़की को दी जाती है सुन्दर सी गुड़िया औऱ बता दिया जाता है , की तुम्हें बनना है गुड़िया सी राजकुमारी,
औऱ लड़कों को बचपन से ही थमा दी जाती है बंदूक  औऱ बता दिया जाता है कि तुम्हें बनना है, पुलिस या फ़ौजी
करनी है तुम्हें इस देश की रक्षा औऱ लड़ते ही रहना है ज़िन्दगीभर
लेकिन बताओ लड़की को बन्दूक न देकर गुड़िया थमाई किसने? क्यों नहीं दिया उसे बॉर्डर पर लड़ने का अधिकार
क्यों दूर रखा उसे देश पर बलिदान होने से, जब भी लड़की को अधिकार मिला है, तो वो मर्दों से आगे खड़ी रहीं हैं
लक्ष्मीबाई, चेन्नमा, इंदिरा से लेकर फौगाट बहने साक्षी मलिक औऱ मीरा बाई चानू तक
जितनो को अधिकार मिले हैं उनने मर्दों के आगे मर्दानी होने के सबूत दिये हैं

हां जानती हूँ कि स्कूल में लड़की को केवल टेबल पर खड़ा कर दिया जाता है
औऱ वहीं लड़कों को बना दिया जाता है मुर्ग़ा औऱ रख दी जाती है कोई क़िताब  पीठ पर
गिरने पर दिये जातें हैं उसमें डंडे, फ़िर कह दिया जाता है, तुम लड़के हो रो नही सकते
लेकिन लड़की ने कब किया मना सज़ा पाने के लिए, ये तो शिक्षक की मानसिकता थी जिसने लड़की को कमज़ोर समझा
शिक्षक ने नही माना कि लड़की भी लड़को से ज़्यादा सामर्थ्यवान है, वो झेल सकती है लड़कों की तरह हर परेशानी, 
लड़की को दबाया कुंठित समाज ने, क्यों लड़की जब होती है बीस साल की तो शुरू हो जाती हैं उसकी शादी की तैयारियां ?
वहीं लड़के जब होते हैं 18 साल के शुरू हो जाती है किसी नौकरी की तलाश उन्हें खड़े होना है अपने पैरों पर, 
करना है काम उन्हें कमाना है बहन की शादी के लिए, मां बाप के ईलाज़ के लिये 
फ़िर कमाना है पत्नी के श्रृंगार के लिये फ़िर बच्चों की पढ़ाई के लिये 
उसे कमाते ही रहना है जिंदगीभर अपने सपनों औऱ आराम को छोड़कर
लेकिन लड़की को नही जाने दिया दूसरे शहर नौकरी तलाशने के लिए
क्यों समझ लिया जाता है नौकरी करने वाली को बदचलन चालबाज़
क्यों नहीं लड़की को दी जाती आज़ादी लड़को की तरह देर रात तक काम करने की
क्यों नहीं दिया जाता लड़की को भाई की शादी का ज़िम्मा ?
इसलिए ये समझ लो कि लड़का बनना आसान हो या नही, लेकिन लड़की बने रहना ज़्यादा कठिन है

©Ashok #लड़की #लड़के