ख़त सुनो प्रिय देखा जबसे है तुमको मेरी आंखों ने, है चैन नहीं मेरे मन को और भँवर बढ़ी हैं सांसों में, जिस शाम से तेरे संग चल के थामा है तेरे हाथों को, उठ रहीं तितलियां इस देह में और नभ मैं तांकू रातों को, ये हाथ फैलाऊं भोर में मैं, इन हवा को बाहों में भर लूं, जो आलिंगन पिछले दिनों हुआ चाहता हूं उसमें घर कर लूं, तुम पल भर को गर संग चल दो उसे साथ बनाएं जीवन का, हम नित्य पहर को संग काटें, संग रस्ता ढूंढे संगम का, ये रिक्त जगह, छोटा सा ख़त हैं दिल के सारे भाव मेरे, इस रक्त में बहती प्रेम धरा, मुझे लगता है प्रभाव तेरे, है इंतज़ार तेरी हां का, है प्रेम मुझे, मैं लिखता हूं, इस खत में छोड़ के रिक्त जगह मैं अपनी कलम को रखता हूं, इस क्षण के बाद अब हर क्षण में, इस खत का ही इंतजार मुझे दिल में हां हो, मन में दुविधा, हो जो उत्तर स्वीकार मुझे । ©Shivam Nahar #letter #proposal #waiting #Love #hindipoetry