होता व्यथित मानव हृदय,उर कल्पना-हाला उठी। वसुधा व्यथा से चीखती इंसानियत चिल्ला उठी। बेखौफ अपराधी सड़क पर हों खुले जब घूमते, असि हो गई निस्तेज, तब कर-समसि हो ज्वाला उठी। अरुण शुक्ल "अर्जुन" प्रयागराज Khushi 😄