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कोरोना अब गुजर रहा है, गांव शहर चौबारों से। इसको प

कोरोना अब गुजर रहा है,
गांव शहर चौबारों से।
इसको पानी खाद मिल रहा,
मरकज और मजारों से ।
सीमाएँ तो सील हो गईं, 
भीड़ हटी बाजारों से।
लेकिन ख़तरा बना हुआ है,
 छुपे हुए गद्दारों से।।

गौरव दीक्षित (राहुल) कोरोना अब गुजर रहा है,
गांव शहर चौबारों से।
इसको पानी खाद मिल रहा,
मरकज और मजारों से ।
सीमाएँ तो सील हो गईं, 
भीड़ हटी बाजारों से।
लेकिन ख़तरा बना हुआ है,
 छुपे हुए गद्दारों से।।
कोरोना अब गुजर रहा है,
गांव शहर चौबारों से।
इसको पानी खाद मिल रहा,
मरकज और मजारों से ।
सीमाएँ तो सील हो गईं, 
भीड़ हटी बाजारों से।
लेकिन ख़तरा बना हुआ है,
 छुपे हुए गद्दारों से।।

गौरव दीक्षित (राहुल) कोरोना अब गुजर रहा है,
गांव शहर चौबारों से।
इसको पानी खाद मिल रहा,
मरकज और मजारों से ।
सीमाएँ तो सील हो गईं, 
भीड़ हटी बाजारों से।
लेकिन ख़तरा बना हुआ है,
 छुपे हुए गद्दारों से।।

कोरोना अब गुजर रहा है, गांव शहर चौबारों से। इसको पानी खाद मिल रहा, मरकज और मजारों से । सीमाएँ तो सील हो गईं, भीड़ हटी बाजारों से। लेकिन ख़तरा बना हुआ है, छुपे हुए गद्दारों से।। #कविता