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हलकी हलकी धूप बादलों मे भड़की। ऐसा लगता सूरज ने खो

हलकी हलकी धूप बादलों मे भड़की।
ऐसा लगता सूरज ने खोली खिड़की।।

लाल रंग की ओढ़ रखी सर पे चूनर
सजी धजी सी आई दिनकर की लड़की।

ऐसा लगता सूरज ने खोली खिड़की।।

बारिश की टिप टिप से मन भर आया है
धूप नायिका की लगती मीठी झिड़की।

ऐसा लगता सूरज ने खोली खिड़की।।

काई की चादर मे सिमटी थी धरती 
आते ही वो बरखा रानी पर तड़की।

ऐसा लगता सूरज ने खोली खिड़की।।

जब से तुम छुट्टी पर थे सूरज दादा
रोज रोज बदली देती हमको घुड़की।

ऐसा लगता सूरज ने खोली खिड़की।।

©डॉ.शिवानी सिंह
हलकी हलकी धूप बादलों मे भड़की।
ऐसा लगता सूरज ने खोली खिड़की।।

लाल रंग की ओढ़ रखी सर पे चूनर
सजी धजी सी आई दिनकर की लड़की।

ऐसा लगता सूरज ने खोली खिड़की।।

बारिश की टिप टिप से मन भर आया है
धूप नायिका की लगती मीठी झिड़की।

ऐसा लगता सूरज ने खोली खिड़की।।

काई की चादर मे सिमटी थी धरती 
आते ही वो बरखा रानी पर तड़की।

ऐसा लगता सूरज ने खोली खिड़की।।

जब से तुम छुट्टी पर थे सूरज दादा
रोज रोज बदली देती हमको घुड़की।

ऐसा लगता सूरज ने खोली खिड़की।।

©डॉ.शिवानी सिंह