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सामने मील का पत्थर है मग़र नज़रों में कुछ और

सामने  मील का  पत्थर  है  मग़र  नज़रों  में  कुछ  और  है,
डगर  अज़नबी  सी  है मालूम होता है  रस्ता कुछ  और  है।
सुना  है  वो लगा  लेते  है  अंदाज़ा बस  आँखों को देखकर,
ये  ज़मीं पर  गिरीं बूँद आसमाँ की बारिश नही कुछ और है।
नींद में  हूँ  फिर भी मालूम है कि सफ़र अभी अधूरा है  मेरा,
आशु गर ज़िंदा हूँ मैं तो यक़ीनन ये ख़्वाब नही कुछ और है।
 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏

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🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  को  प्रतियोगिता:-68 में स्वागत करता है..🙏🙏
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डगर  अज़नबी  सी  है मालूम होता है  रस्ता कुछ  और  है।
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ये  ज़मीं पर  गिरीं बूँद आसमाँ की बारिश नही कुछ और है।
नींद में  हूँ  फिर भी मालूम है कि सफ़र अभी अधूरा है  मेरा,
आशु गर ज़िंदा हूँ मैं तो यक़ीनन ये ख़्वाब नही कुछ और है।
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