प्रकृति आसमां जमीं को कातर निगाहों से देख रहा, क्यूं आखिर सुप्त जमीं है खिली- खिली, क्यूं विहग उड़ रहे, क्यूं तितली फूलों का रसपान कर रही, क्यूं भंवरे गुंजन गान कर रहे, क्यूं हर्ण परित पर ओस के मोती है बिखरे पड़े, क्यूं जंतु आज यूं विचरण कर रहे, क्यूं ज़र्रा ज़र्रा महक रहा, सब ऊर्जा मय,आशा से भरपूर मदमस्त है, फिर ये मानव किस ओट में है छिपा पड़ा, सोचकर हैरान परेशान आसमां जमीं पर बरस पड़ा। जमीं प्रफुल्लित हो बोली - यही रह गया था बाकी मेरे सौंदर्य में। Countinue ....... check next post for complete poem. #firstquote2020 #poetry#nature#love#life