~©Anjali Rai जैसे सहेजते हैं किनारे धाराओं को, उठती गिरती नदी की व्याकुलता को। ठीक वैसे ही समेटती हैं कविताएं, उठती गिरती कवि की व्याकुलता को!! कविताऐं वो "किनारा" ही तो हैं; जो भले स्वयं किनारे कर दी गई हो पर जिसने कभी किसी से,