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"सावन अब आने को है" सावन में यूँ तो चा

"सावन अब आने को है"
            सावन में यूँ तो चारो ओर एक हरी चादर सी बिछ जाती है साथ ही मन में भी एक सावन सा खिल उठता है।उस पर जब ये बारिश की बूंदे अठखेलियां करने लगती हैं न,तब ये मन बस मयूर हो जाता है।भूल जाना चाहता है सारे कायदों,सारे बंधनों को;और भीग जाना चाहता है इस बारिश में।
            एक तो भीगा मौसम और उस पर मन को भिगोती तुम्हारी याद।सच हैं न कि यादें ही जीवन संगिनी होती है....अथ से इति तक...
          याद तो होगा तुमको इस बारिश में उन कच्चे रास्तों से होकर जाना।भीगने के लालच में अक्सर बिना रेनकोट के चली जाया करती थी ,और वो तुम्हारा गुस्से से घूरना।वैसे तो मैं भी थी एक no की अकड़ू,पर सच में तुम्हारा हक़ जता के डाँटना अच्छा लगता था।और मेरा सारा अकडूपन तुम्हारी मासूम सी मुस्कराहट से हार जाता था।
आजकल भी अक्सर भीग जाती हूँ इन बरसती बूंदों में और ये सोचकर खुश हो जाती हूँ कि यही बादल तुम पर भी बरस रहे होंगे,और इतने दूर हम साथ साथ भीग लेंगे।
             पता है कभी तुम्हें लेकर कोई उम्मीद ,कोई सपना नहीं सजाया इन आँखों में;पर फिर भी तुम्हे कब और कैसे हर एहसास में बसा लिया कि आज तुम मुझमें मुझसे कहीं ज्यादा हो।ये रिश्ता शायद कोई न समझे.....
     'जिसमे न मिलन है ,न मिलने की तड़प है..
      न कोई उम्मीद है,न उसके न पुरे होने की कसक है।'
     बस प्यार है निस्वार्थ प्यार...जो चाहता है तुम्हे अपने अंदर बसाये रखना,देह और दैहिक संबंधो से परे इस रिश्ते को सजाये रखना।और मेरी इस कोशिश में आज मेरे साथ है सावन की मस्त बूंदे।पर जब सावन जाने को है ...
तुम बस जाओ मुझमें बनकर तुम्हारी याद...
                      क्योंकि सावन अब आने को है।
                                Kavita... सावन अब आने को है...
"सावन अब आने को है"
            सावन में यूँ तो चारो ओर एक हरी चादर सी बिछ जाती है साथ ही मन में भी एक सावन सा खिल उठता है।उस पर जब ये बारिश की बूंदे अठखेलियां करने लगती हैं न,तब ये मन बस मयूर हो जाता है।भूल जाना चाहता है सारे कायदों,सारे बंधनों को;और भीग जाना चाहता है इस बारिश में।
            एक तो भीगा मौसम और उस पर मन को भिगोती तुम्हारी याद।सच हैं न कि यादें ही जीवन संगिनी होती है....अथ से इति तक...
          याद तो होगा तुमको इस बारिश में उन कच्चे रास्तों से होकर जाना।भीगने के लालच में अक्सर बिना रेनकोट के चली जाया करती थी ,और वो तुम्हारा गुस्से से घूरना।वैसे तो मैं भी थी एक no की अकड़ू,पर सच में तुम्हारा हक़ जता के डाँटना अच्छा लगता था।और मेरा सारा अकडूपन तुम्हारी मासूम सी मुस्कराहट से हार जाता था।
आजकल भी अक्सर भीग जाती हूँ इन बरसती बूंदों में और ये सोचकर खुश हो जाती हूँ कि यही बादल तुम पर भी बरस रहे होंगे,और इतने दूर हम साथ साथ भीग लेंगे।
             पता है कभी तुम्हें लेकर कोई उम्मीद ,कोई सपना नहीं सजाया इन आँखों में;पर फिर भी तुम्हे कब और कैसे हर एहसास में बसा लिया कि आज तुम मुझमें मुझसे कहीं ज्यादा हो।ये रिश्ता शायद कोई न समझे.....
     'जिसमे न मिलन है ,न मिलने की तड़प है..
      न कोई उम्मीद है,न उसके न पुरे होने की कसक है।'
     बस प्यार है निस्वार्थ प्यार...जो चाहता है तुम्हे अपने अंदर बसाये रखना,देह और दैहिक संबंधो से परे इस रिश्ते को सजाये रखना।और मेरी इस कोशिश में आज मेरे साथ है सावन की मस्त बूंदे।पर जब सावन जाने को है ...
तुम बस जाओ मुझमें बनकर तुम्हारी याद...
                      क्योंकि सावन अब आने को है।
                                Kavita... सावन अब आने को है...