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दिली ख्वाहिश थी, करेंगे मेयार इश्क । मगर थक चुके ह

दिली ख्वाहिश थी, करेंगे मेयार इश्क ।
मगर थक चुके हैं, करके दो चार इश्क ।। कभी मंजिल से मोहब्बत 
तो कभी तिल से मोहब्बत ।
कभी मोहब्बत सपनों से 
कभी हुई अपनों से मोहब्बत ।।
कभी मोहब्बत-ए-हिज़रा
कभी मिली महफिल से मोहब्बत।
चल उम्मेद अब करें खुद 
अपने दिल से मोहब्बत।।
दिली ख्वाहिश थी, करेंगे मेयार इश्क ।
मगर थक चुके हैं, करके दो चार इश्क ।। कभी मंजिल से मोहब्बत 
तो कभी तिल से मोहब्बत ।
कभी मोहब्बत सपनों से 
कभी हुई अपनों से मोहब्बत ।।
कभी मोहब्बत-ए-हिज़रा
कभी मिली महफिल से मोहब्बत।
चल उम्मेद अब करें खुद 
अपने दिल से मोहब्बत।।
ummedsingh3562

Ummed singh

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