दिली ख्वाहिश थी, करेंगे मेयार इश्क । मगर थक चुके हैं, करके दो चार इश्क ।। कभी मंजिल से मोहब्बत तो कभी तिल से मोहब्बत । कभी मोहब्बत सपनों से कभी हुई अपनों से मोहब्बत ।। कभी मोहब्बत-ए-हिज़रा कभी मिली महफिल से मोहब्बत। चल उम्मेद अब करें खुद अपने दिल से मोहब्बत।।