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कुछ बोलो कुछ मत बोलो, तोलो फिर बेझिझक बोलो। कुछ दे

कुछ बोलो कुछ मत बोलो,
तोलो फिर बेझिझक बोलो।
कुछ देखो कुछ मत देखो,
पहले समझो फिर सेंको।
कुछ सोचो फिर चल पढ़ो,
रुको मत मंजिल तक बढ़ो।
राग, भय, द्वेष तीनों रिपुदायी,
रज,तम,सत तीनों सिखदाई।
भोर, दोपहर, शाम सुनाई,
बचपन,जवानी, बुढ़ापा समझाई।
रोटी कपड़ा और मकान,
जीवन में जरुरत-ए-शान।
यह दुनिया जिंदगी और मौत की दुकान,
यहां वहां आदमी से आदमी की पहचान।
रोज कल आज की आवाज,
उस जहाँ से इस जहां में आगाज़।
कौन किसका पराया जहाँ,
सांस रुकने से मतलब यहाँ।

बाबा कविता#
कुछ बोलो कुछ मत बोलो,
तोलो फिर बेझिझक बोलो।
कुछ देखो कुछ मत देखो,
पहले समझो फिर सेंको।
कुछ सोचो फिर चल पढ़ो,
रुको मत मंजिल तक बढ़ो।
राग, भय, द्वेष तीनों रिपुदायी,
रज,तम,सत तीनों सिखदाई।
भोर, दोपहर, शाम सुनाई,
बचपन,जवानी, बुढ़ापा समझाई।
रोटी कपड़ा और मकान,
जीवन में जरुरत-ए-शान।
यह दुनिया जिंदगी और मौत की दुकान,
यहां वहां आदमी से आदमी की पहचान।
रोज कल आज की आवाज,
उस जहाँ से इस जहां में आगाज़।
कौन किसका पराया जहाँ,
सांस रुकने से मतलब यहाँ।

बाबा कविता#