वो रुका नहीं वो एक पल झुका नहीं था सपना बुलंद इतना की वो एक पल भी थमा नहीं वो सोता तो जगा देता था झपकी भी लगी तो उठा देता था की वो टूटा भी और टूट के बिखरा भी क्या करे साहब सपना था मजबूत इतना की फिर भी बिखरा नहीं हार को वो जानता था ही नहीं हर पल भागता था वो उस सपने के पीछे वो रुकना जानता था ही नहीं सपने वो ही नहीं होते जो आप देखते हो दूसरे के सपनों को अपना बनाकर की अब ये मेरा है वो है सपना ©Pooja Bansal सपना एक खुआब #Thinking