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वो रात.., ना वो मिलन की रात थी, न जुदाई की रा


वो रात..,

 ना  वो  मिलन की रात थी, न जुदाई की रात थी
 मेरे पलकों  से ख्वाबों की अंतिम विदाई की रात थी

फिर तो सजती रही बारात अश्कों की सारी रात 
एक टूटे हुए दिल की वो नुमाइश की रात थी

न वो मिलन की रात थी, न जुदाई की रात थी
मेरे पलकों से......................................

अरमानों की बस्ती बह चली थी आंसुओं के बाढ में
कहने वाले कहते हैं कि वो बधाई की रात  थी  

न वो मिलन की रात थी, न जुदाई  की रात थी
मे रे पलकों से.......................................

चेहरे के तेज से दिल का  हर दाग छुप रहा था
सात फेरों की आग से दिल का हर आग बुझ रहा था
नाकामियों के ढेर पर चिता सा हम लेटे रहे
 और किसी के लिए वो तौफो की, खुशामदी की,  फरमाइश की रात थी
न वो...........................................
मेरे पलकों से...................................

भोर की  वो पहली किरण सा जो माथे पे सज रहा था 
वहीं रंग  मेरे रगों में बह रहे रंग पर भारी पड़ रहा था
 वो पायलों की छम-छम  वो चूड़ियों की खनक
शायद खुदा के अदालत की  वो अंतिम  सुनवाई की रात थी
न वो.......................

उस रात आसमां पर झिलमिलाती चांदनी भी आगोश में लेने को बेताब थी मुझे 
लोग करते रहे दुआ जिसे नेमतों की रात समझकर  
वो जिंदगी और मौत की हाथापाई की रात थी 

न वो मिलन की रात थी न जुदाईं की रात थी
मेरे पलकों से ख्वाबों की अन्तिम बिदाई की रात थी.!

©Chitra Gupta
  #वोरात