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महामारी ना कर पाई वो सियासत कर गई पांव के छाले देख

महामारी ना कर पाई वो सियासत कर गई
पांव के छाले देखे न किसी ने संवेदना ही मर गई
लंबे सफर हमारे , क्या पांव थकते नहीं है
घर जाने की जिद है बस इसलिए रुकते नहीं है
हमें घर भेजने के वादे कसमें लाख तुमने कर दिए होंगे
संख्या देख कर हमारी  राजनेता सब मुकर दिए होंगे 
भूखे पेट , नंगे पैर  हाथों में थैले हैं 
कपड़े क्या देखते हो साहेब बहुत मेले हैं
सूटकेस पर , सायकिल पर  , पालने में ये मेरा अपना बच्चा है
ये हाईवे तुम्हारा , रेलवे की लाइन या रास्ता हमारा कच्चा है
जब कोई ट्रक तेज रफ्तार से हमें कुचल देता है
जब किसी पापी नेता का मन राजनीति को मचल देता है
तो तुम्हे हमारी भूख की याद सताती है?
क्या हमारी वेदना तुम्हारे मन की रुलाती है?
भले मानुष कुछ लंगर भी लगाते है
हमारी भूख को अपनी भूख बनाते हैं
कुछ छपास की खातिर ही सही हमें कुछ खिलाते हैं
हमारे घावों को देख चप्पल भी पहनाते है
लेकिन तुमने कभी सोचा है कि हम रोड पर पड़े क्यों है
3 4000 देकर भी  ट्रकों में बोरी के जैसे लदे क्यों है
गांव से शहर दर शहर हम काम की खातिर ही तो जाते हैं
अपना सबकुछ छोड़ कर ये दुर्दशा बस अब पाते हैं
क्या गांव हमें अब अपनाएगा ? काम हमें दिलाएगा?
या फिर मौत से बुरी जिंदगी देने शहर की तरफ लौटाएगा
चाहे खाने के पैकेट मत दो हम पर एहसान मत करो
अपने घर तरफ काम दिला दो बस चाहे सम्मान मत करो
हम मजदूर  हैं राष्ट्रनिर्माता हमें बस गरीब मत मानो
हमारे बिना सब बंद हो जाएगा देखना उन्नति करीब मत मानो

— “सौरभ”       मजदूर #migrants
#workers_on_road
#corona
#who
#pm
महामारी ना कर पाई वो सियासत कर गई
पांव के छाले देखे न किसी ने संवेदना ही मर गई
लंबे सफर हमारे , क्या पांव थकते नहीं है
घर जाने की जिद है बस इसलिए रुकते नहीं है
हमें घर भेजने के वादे कसमें लाख तुमने कर दिए होंगे
संख्या देख कर हमारी  राजनेता सब मुकर दिए होंगे 
भूखे पेट , नंगे पैर  हाथों में थैले हैं 
कपड़े क्या देखते हो साहेब बहुत मेले हैं
सूटकेस पर , सायकिल पर  , पालने में ये मेरा अपना बच्चा है
ये हाईवे तुम्हारा , रेलवे की लाइन या रास्ता हमारा कच्चा है
जब कोई ट्रक तेज रफ्तार से हमें कुचल देता है
जब किसी पापी नेता का मन राजनीति को मचल देता है
तो तुम्हे हमारी भूख की याद सताती है?
क्या हमारी वेदना तुम्हारे मन की रुलाती है?
भले मानुष कुछ लंगर भी लगाते है
हमारी भूख को अपनी भूख बनाते हैं
कुछ छपास की खातिर ही सही हमें कुछ खिलाते हैं
हमारे घावों को देख चप्पल भी पहनाते है
लेकिन तुमने कभी सोचा है कि हम रोड पर पड़े क्यों है
3 4000 देकर भी  ट्रकों में बोरी के जैसे लदे क्यों है
गांव से शहर दर शहर हम काम की खातिर ही तो जाते हैं
अपना सबकुछ छोड़ कर ये दुर्दशा बस अब पाते हैं
क्या गांव हमें अब अपनाएगा ? काम हमें दिलाएगा?
या फिर मौत से बुरी जिंदगी देने शहर की तरफ लौटाएगा
चाहे खाने के पैकेट मत दो हम पर एहसान मत करो
अपने घर तरफ काम दिला दो बस चाहे सम्मान मत करो
हम मजदूर  हैं राष्ट्रनिर्माता हमें बस गरीब मत मानो
हमारे बिना सब बंद हो जाएगा देखना उन्नति करीब मत मानो

— “सौरभ”       मजदूर #migrants
#workers_on_road
#corona
#who
#pm