बचपन और पिटाई वक़्त गुज़र जाता था जब खेल में भूल कर पढ़ाई उफ़ याद है आज भी वो माँ के बैलन की पिटाई ! शाम में गुल बिजली का होना और वो चोरी की मिठाई चाची भी कम न थी चुगली में लेकर वो आधी टूटी मिठाई माँ का क्या था हर बात पे करदेती थी अपनी कुटाई बड़े अच्छे लगती थे वो खेल आँगन में चुप्पन छुपाई दवर्ड भाग में गर गिरे चुटकी साला उसपे भी होती थी पिटाई वो भी क्या दिन थे बचपन के वो कपड़ों के लीये भाई भाई की लड़ाई माँ का कभी कभी कहना तू भाई है छोटे का या कसाई जैसे भी गुज़रे वो दिन थे याद करके आज मेरी आँख भर आई माँ तेरी कमी हमेशा रहेगी तेरी याद आज बहोत आई #BachpanAurPitaai