अब ज़िन्दगी एक मायाजाल की जैसी लगती हैं.... हर बिता हुआ पल एक गुजरे हुए साल की जैसी लगती हैं... जबसे तुम मुझे अलबिदा कहके गए हो ज़िन्दगी वही पर कही रुक सी गयी है... बस जी रहा हूं एक ज़िंदा लास की तरहा मेरे मुंह से हँसी कही खो सी गई हैं....। आज ज़िन्दगी अजीब खेल खेल रहा है... एक माँ के सामने उसकी ही दोनों बेटे उसकी दौलत का बंटबारा करते है जब माँ को रख ने की बारी आती है सब एक दूसरे के मुंह को ताक ते रहते है जीस माँ केलिये उसकी दोनों बेटे उसके लिए थे उसकी कमज़ोरी.. आज बही माँ उन बेटो केलिए बन गईं है उनकी मजबूरी... ये ज़िन्दगी अजीब खेल खेल रही है कभी सुख तो कभी आँसुओ की बरसात कर रही हैं..। by sai mahapatra मायाजाल