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पल्लव की डायरी पौह फटने से पहले सुबह नींद से,जग को

पल्लव की डायरी
पौह फटने से पहले
सुबह नींद से,जग को जगाता हूँ
प्रकृति के नजारे सजाता हूँ
इंसान का कैसा हो गया मुझसे बैर
रहम न करके, मेरा अस्तिव मिटाता है
दुनियाँ में इतने फल फूल है भूख मिटाने के
फिर भी मेरे फिगर को कत्ल करके खाता है
दिल और दिमाक रख भी संवेदनाये भूल जाता है
                                         प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
  दिल दिमाक रखकर भी,संवेदनाये खो जाता है
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