गरजे कुंजर, मच गया समर खड्गों ने प्यास बुझाई है हो अर्ध रथी या महारथी सबकी बारी अब आई है बोले कृष्ण कुपित होकर क्यों मौन, स्तबक खडे हो पार्थ किस की जय के घोष स्वर सुन पुतले से मृत पडे हो पीर्थ कहाँ गया नायक जिसने चिड़िया की आँख को भेद दिया कहाँ गया वो तप पौरुष जिसने पत्थर को पीस दिया अरे कहाँ गई वह ज्वाला जो वर्षा वन पिघलाती है कहाँ गई वह चेतना जो डूबत को आस जगाती है हे कौंतेय जागो जागो विपदा आगे बढ़ आई है करो वार अरि दल पर तुम सबकी बारी अब आई है। (राधेय) ©Vinayak Mishra #महाभारत