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पल्लव की डायरी अफसोस दिन साल महीने गुजर जाते है उम

पल्लव की डायरी
अफसोस दिन साल महीने गुजर जाते है
उम्रो के पड़ाव ऐसे ही आगे बढ़ते जाते है
सूरते हाल वयान करती
हालातो से जूझते हम अवसाद में डूब जाते है
समस्याओं के पहाड़ों से लड़ते लड़ते
जीवन चूक जाते है
अवधारणा किया व्यक्त करे हम
मन से जीवन जी ही नही पाते है
जग के बुने हुये जालो  में
मकड़ी के तरह फँसते जाते है
                                       प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
  मन से जीवन जी ही नही पाते है

मन से जीवन जी ही नही पाते है #कविता

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