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शहर के मकानों में खिड़कियों पर देखें हैं बालकनी के

शहर के मकानों में खिड़कियों पर
देखें हैं बालकनी के गमलों में पौधे  
उन कंक्रीट की दरख़्तों में 
कैद सिर्फ ऑक्सीजन देने के लिए 
पर उन्हें गौर से देखा है कभी 
ओ भी सिमट गए हमारी तरह 
कभी जंगल भी गए हैं आप 
देखें हैं प्रकृति को स्वतंत्रता से झुमते हुए 
पेड़ और लताओं के संबंध देखें हैं कभी
कीतनी प्रेम है उन बहुजातीय वृक्षों में
कितने उदारता से जीते हैं सब
प्रेम नगर उजाड़ बन रही अट्टालिकाएं
तो कैसे पनपेगी सदभावना
बहुमंजिली खिड़कियों से देखा है कभी 
बिखरी हैं झोपड़ीयां कटे उजाड़ जंगल की तरह
झुलस रही अंकुरित बिजें संचयन के अभाव में

©Ramakant Jee khidki
शहर के मकानों में खिड़कियों पर
देखें हैं बालकनी के गमलों में पौधे  
उन कंक्रीट की दरख़्तों में 
कैद सिर्फ ऑक्सीजन देने के लिए 
पर उन्हें गौर से देखा है कभी 
ओ भी सिमट गए हमारी तरह 
कभी जंगल भी गए हैं आप 
देखें हैं प्रकृति को स्वतंत्रता से झुमते हुए 
पेड़ और लताओं के संबंध देखें हैं कभी
कीतनी प्रेम है उन बहुजातीय वृक्षों में
कितने उदारता से जीते हैं सब
प्रेम नगर उजाड़ बन रही अट्टालिकाएं
तो कैसे पनपेगी सदभावना
बहुमंजिली खिड़कियों से देखा है कभी 
बिखरी हैं झोपड़ीयां कटे उजाड़ जंगल की तरह
झुलस रही अंकुरित बिजें संचयन के अभाव में

©Ramakant Jee khidki
ramakantjee6956

Ramakant Jee

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